Saturday, March 21, 2009

गुलामी जब अच्छी लगने लगती है

इराक के आभासी शासकों को अमेरिकी गुलामी अच्छी ही नहीं लगने लगी है, बल्कि अब तो उन्हें उसमें आनंद भी आने लगा है। निश्चय ही वह ख़राब वक्त होता है जब एक सभ्यता को गुलामी ख़राब नहीं लगती, लेकिन सबसे ख़राब वक्त वह होता है जब उसे गुलामी अच्छी लगने लगती है। वैसे किसी भी सभ्यता के आम जन को गुलामी कभी अच्छी नहीं लगती, इसलिए ही वह हर सत्ता का विरोध करने के लिए मजबूर होता है, लेकिन उसके ऊपर जो सत्ताएं विराजमान होती हैं उन्हें एक वक्त में गुलामी ख़राब नहीं लगती, और एक दूसरे वक्त में यह उन्हें अच्छी लगने लगती है। आमजन के लाये यही सबसे बुरा वक्त होता है। इसे वक्त में ही उसके ऊपर थोंपी गयी गुलामी की तमाम प्रताड़नाएं उसकी सामान्य जिन्दगी पर कहर ढा रही होती हैं। इराकी समाज आज वक्त के इसी बिन्दु पर आ खडा हुआ है। पूरा संसार जानता है इस समय इराक पर अमेरिका का कब्ज़ा है और वहां की सबसे ऊँची दिखने वाली कुर्सियों पर जो तथाकथित इराकी बैठे दिखते हैं, उन्हें अमेरिका की इस गुलामी का आनंद ऐसा फील गुड दे रहा है जैसे वे सचमुच के ही शासकों हो गए हों। ऐसे ही इन आभासी शासकों की एक अदालत ने मुन्तज़र अल जैदी को तीन साल कैद की सज़ा सुनाई है। ऐसी ही एक अदालत ने सद्दाम हुसैन को फाँसी देने का हुकुम सुनाया था। असल में यह सारे आदेश अमेरिका के हैं, इराक वाले जो इन्हें देते हुए दिख रहें हैं उनकी पीठ पर अमेरिकी पिस्तौल की नोकें हैं। सच में मुझे तो मुन्तज़र अल जैदी से ईर्ष्या है। जो मौका उसे मिला वह हर किसी को नसीब नहीं हो सकता कि इतना पास से वह अपने पैर के जुत्तों को उस क्रूर, अमानवीय और हत्यारे राष्ट्रपति जार्ज बुश के गंदे चेहरे पर फेंककर , अपना निजी ही नहीं, बल्कि पूरी इराकी जनता के आक्रोश को वाणी दे सका, वरना इस संसार के अरबों लोग अपना जूते उसके चेहरे पर कहाँ मार पायेंगे। जिस क्रूर व्यक्ति के साथ इस युवा पत्रकार ने यह मुमकिन किया, उसकी अमानवीयताओं का खौफ दुनिया के बड़े से बड़े फन्ने खान शासकों के दिलों में ऐसा घर किए हुए है कि उसका नाम सुनते ही इन सब के कलेजे कांपने लगते हैं, वे सब तो उसकी चरण पादुकाओं को धो धो कर पीते हुए अपनी गुलामी का आनंद लेते हुए झूमते रहते हैं। सज़ा तो करोड़ों आदमियों के हत्यारे को मिलनी चाहिए , पर मिलती है मुन्तज़र अल जैदी जैसे आज़ादी के परवानों को। हर युग में यही हुआ है। भगत सिंह कोई ज्यादा पुरानी बात नहीं है।

6 comments:

  1. राकेश जी,
    नमस्‍कार। आप जैसे साहित्‍यकार ब्‍लाग की दुनिया में आएंगे तो निश्चित ही इस क्षेत्र का भी भला होगा। इसके साथ ही बेहतर सा‍हित्‍य का भी लोग रसास्‍वादन कर सकेंगे। शुभकामना।

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  2. ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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  3. आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है ............

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  4. यह देखना बहुत सुखद है कि आप जैसे गंभीर रचनाकार इस माध्यम से जुड़ रहे हैं. बहुत बढ़िया . आपके साथ २००५ में शिमला प्रवास की स्मॄतियाँ ताजा हुईं.
    बहुत बढ़िया. निरंतरता बनी रहे !

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